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Saturday, 3 March 2012

अपनी सफाई में . . .- भंवर मेघवंशी


मैंने आरसीएम का समर्थन क्यों किया ?
मुझसे यह सवाल बार-बार पूछा गया कि मैंने आरसीएम का समर्थन क्यों किया? इसके पीछे क्या राज है? शुरू-शुरू में मैंने कई लोगों को जवाब दिए मगर फिर लगा कि मैं इस बारे में सार्वजनिक रूप से अपना जवाब दूं।
मुझे यह भी लगा कि मुझे अपनी पोजीशन स्पष्ट करनी चाहिए कि मैं इस मामले में कहां पर खड़ा हूं तथा मेरा सोच क्या है? इससे पहले मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं किसी भी कंपनी अथवा कारपोरेट घराने का समर्थक नहीं हूं। अमीरी की चकाचोंध मुझे प्रभावित नहीं करती है, मैं एक छोटे से गांव का निवासी हूं, किसान का बेटा हूं। पहले कभी शिक्षक था, मुख्यधारा की पत्रकारिता में रहा, छात्र राजनीति में भी दखल रखा, मेनस्ट्रीम पोलिटिक्स को भी नजदीक से देखा, समझा और तय किया कि मैं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपना जीवन जीऊं, इस चयन से मुझे परम संतुष्टि मिली और वह संतोष आज भी है। आज भी सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर पढ़ना, लिखना और काम करना मुझे अच्छा लगता है और संतुष्टि देता है, मगर समाज और व्यवस्था में कहीं भी अन्याय, अत्याचार व उत्पीड़न देखता हूं तो बोलता हूं क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी है और मैं सहन करने वालों में से नहीं हूं, प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की इस पंक्ति में मेरा पूरा यकीन है-बोल कि लब आजाद है तेरे...।
मेरी मान्यताएं, मेरे सामाजिक सरोकार, राजनीतिक प्रतिबद्धताएं और आर्थिक सामाजिक ढांचे पर विचार बहुत स्पष्ट है, जिन्हें मैंने कभी छिपाया नहीं, जिसकी वजह से कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा, मगर जो भी कीमत चुकानी पड़ी, मैंने अपने विचारों को हर हाल में अभिव्यक्त किया तथा उससे होने वाली प्रतिक्रियाओं को भी झेला। मेरे निकट के मित्र यह अच्छी तरह से जानते है कि मैं भारतीय संविधान, न्यायिक प्रणाली, कार्यपालिका, अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकार तथा संसदीय सेकुलर डेमोक्रेसी का घनघोर समर्थक हूं तथा लोगों के गरिमापूर्ण जीविका कमाने के नैसर्गिक अधिकार का समर्थन करता हूं। भीलवाड़ा की प्रत्यक्ष व्यापार प्रणाली की बिजनेस कंपनी आरसीएम के बारे में मैंने अपनी पहली राय दिसम्बर 2011 में उस वक्त सार्वजनिक की, जब पुलिस ने अचानक उसके मुख्यालय को कब्जे में ले लिया तथा सभी उत्पादन इकाईयों को ठप्प कर दिया, सर्वर बंद कर दिया और व्यापार करने पर रोक लगा दी, जिसके परिणाम स्वरूप देशभर में फैले उसके लगभग चार हजार रिटेल शाप बंद हो गए, हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए, हजारों मजदूरों को इससे नुकसान उठाना पड़ा तथा आरसीएम के 1 करोड़ 33 लाख उपभोक्ता सीधे तौर पर इसकी चपेट में आ गए।
मेरे देखे किसी भी व्यावसायिक कंपनी पर कार्यवाही से प्रभावित होने वाले इतनी बड़ी संख्या के भारतीयों के नागरिक अधिकारों के लिए बात उठाना कोई गुनाह नहीं है, अगर 10 वर्षों से एक व्यवसाय संचालित था, जो कि भूमिगत तो कतई नहीं था, उसका कई एकड़ में फैला हुआ मुख्यालय है, उसकी बसें चलती है, उसके लोग आरसीएम के कपड़े पहन कर घूमते है, उससे जुड़े लोग उसी के उत्पादों का उपयोग करते है तो यह कोई गोपनीय कार्य तो नहीं ही था, दर्जनों बैंकों में उसके खाते थे, इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्साइज, कस्टम आदि-इत्यादि कितने ही सरकारी विभागों ने उन्हें व्यापार करने की स्वीकृति दी और प्रतिमाह करोड़ों रुपए टैक्स के रूप में वसूलते रहे, उसके सालाना जलसों की सुरक्षा भीलवाड़ा की पुलिस करती रही, सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, फिर अचानक पुलिस, प्रशासन व सत्ता में बैठे लोगों को यह ‘आत्मज्ञान’ कैसे हुआ कि आरसीएम ठगी कर रही है तथा इसने करोड़ों लोगों को ठग कर हजारों करोड़ रुपए इकट्ठा कर लिए है।
मेरा सवाल हमारी व्यवस्था की जवाबदेही को लेकर था कि अगर यह ठगी थी तो इसमें शामिल सभी केंद्र व राज्य सरकार के विभागों के कर्मचारी अधिकारी भी सह अभियुक्त बनाए जाने चाहिए, क्योंकि इसे करने में तो सबका भारी सहयोग आरसीएम को मिला ही है, मगर हम देख रहे है कि यह कार्यवाही एकतरफा थी और अब तक भी है। फिर मेरे मन में यह सवाल भी रहा कि भीलवाड़ा पुलिस ने आरसीएम के किस उपभोक्ता की शिकायत पर यह प्राथमिकी दर्ज की, मैंने एफआईआर पढ़ी, वह प्रारंभ होती है- ‘‘एक मुखबिर से खबर मिली।’’ हमीरगढ़ थाना आरसीएम मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर, 10 साल से करोड़ों की ठगी का काम जारी और 11वें साल में पुलिस को ‘एक मुखबिर’ से सूचना मिलती है! हमारी पुलिस का सूचना तंत्र कितना तेज है और उसके मुखबिर कितने एफिशियेंट है?
मैंने यही सवाल उठाया कि एक दशक तक प्रशासन, पुलिस, मीडिया और जागरूक नागरिक नींद में कैसे सोते रहे? किसी ने भी शिकायत क्यों नहीं की, इससे पहले पुलिस ने कार्यवाही क्यों नहीं की? क्या यह सवाल उठाना गुनाह है? मेरे तो मन में सवाल उठा और मैंने अपनी ओर से पूछने में कोई कंजूसी नहीं की। मैंने यह कहकर पुलिस कार्यवाही का विरोध किया कि यह सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग है तथा नागरिकों के शांतिपूर्ण रोजगार कमाने के संवैधानिक अधिकार पर राजसत्ता का हमला है। इसी सिलसिले में मैंने यह सवाल भी उठाया कि आरसीएम दस वर्षों से सही कैसे थी और फिर अचानक गलत कैसे हो गई है? इतने बरसों तक कैसे सोते रहे कानून के रखवाले? फिर यकायक जागे तो बिना प्रक्रियाओं का पालन किए ही एक बिजनेस हाउस पर ऐसी चढ़ाई कर दी जैसे किसी आतंकी संगठन के मुख्यालय पर की जाती है। यह निश्चित रूप से शर्मनाक बात थी, जिस पर बात की जानी चाहिए थी। आज नहीं तो कल यह सच भी सामने आएगा कि कौन गलत है और कौन सही है?
मैं अपनी बात पर कायम हूं कि पुलिस अपने अधिकारों का अक्सर दुरुपयोग करती है तथा गलत को सही और सही को गलत साबित कर देती है। हमारे सामने सैकड़ों उदाहरण है जहां पर पुलिस ने अपने असीमित अधिकारों का उपयोग करके सामान्य नागरिकों को दुर्दान्त अपराधी बताकर फर्जी मुठभेड़ों में मारा है, इसलिए मुझे पुलिस द्वारा रची गई हर कहानी में सत्य नहीं दिखता है, फिर भी उसकी कार्यवाही हमारी व्यवस्था की एक प्रक्रिया है, जिसकी हम आलोचना तो करते है मगर विरोध नहीं करते है।
मुझे लगता है कि हम विदेशी बाजार को आमंत्रित कर रहे है कि वह भारत में रिटेल में एफडीआई लाए तथा वालमार्ट जैसी रिटेल श्रृंखला देश में फैले, इसके लिए उच्च स्तरीय कोशिशें हो रही है, लेकिन स्वदेशी रिटेल श्रृंखलाओं को हम नष्ट कर रहे है, क्या इसे राष्ट्रीय क्षति नहीं माना जाना चाहिए इसलिए मैंने कहा कि इस कार्यवाही ने करोड़ों नागरिकों का अहित किया है तथा इसका आकलन करने की जरूरत है कि इसने हमारे देश का कितना बड़ा नुकसान किया है। मेरे विचारों का लब्बोलुआब कुल जमा इतना ही था, मगर इस प्रकार के पूंजी समर्थक विचारों के लिए मेरी अच्छी खासी आलोचना की गई, निंदा की गई और मुझे धिक्कारा गया, मुझसे स्पष्टीकरण मांगे गए, मुझसे पूछा गया कि मैंने एक कारपोरेट कंपनी के पक्ष में क्यों बोला? यह भी कहा गया कि मुझे चिटफण्डियों, ठगों और चोरों के पक्ष में खड़े होने की जरूरत क्या थी?
मैं अपनी सफाई में सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि मैं कंपनियों का नहीं मानवों के अधिकारों का समर्थक हूं, यहां भी मैं उन हजारों मजदूरों व करोड़ों संतुष्ट उपभोक्ताओं के अधिकारों की ही बात कर रहा हूं जिन्हें आरसीएम से कोई शिकायत नहीं थी, अब यह अलहदा बात है कि पुलिस के प्रयासों से कुछ लोगों ने ठगी के मुकदमे दर्ज करवाए है, जिन पर अनुसंधान जारी है तथा आरसीएम प्रमुख त्रिलोकचंद छाबड़ा व उनके भाई तथा पुत्र सहित अन्य चार कर्मचारी गिरफ्तार है तथा जेल में है। चूंकि पूरे मसले पर पुलिस अनुसंधान जारी है तथा भीलवाड़ा से लेकर जोधपुर तक माननीय न्यायालयों में आरसीएम के पक्ष विपक्ष में मामले विचारधीन है इसलिए मैं किसी भी मामले के गुणावगुण पर किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं, मैं पुलिस कार्यवाही, मीडिया ट्रायल तथा न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का समर्थक नहीं हूं।
मेरा मानना है कि आरसीएम के संचालकों को अपने पर लगे एक-एक आरोप का जवाब देना होगा, उन्हें साबित करना होगा कि वे चिटफंड व मनी सर्कुलेशन बैनिंग एक्ट के दायरे में नहीं आते है, उन्हें देश को विश्वास दिलाना होगा तथा यह साबित करना होगा कि वे उत्पाद आधारित प्रत्यक्ष व्यापार प्रणाली का व्यवसाय चला रहे है जो विश्व स्तर पर मान्यता रखता है। उन्हें ही अपनी व्यवसाय प्रोत्साहन योजना के पिरामिड या चैन नहीं होने को भी प्रमाणित करना है। आरसीएम के प्रोडक्ट की क्वालिटी तथा उनकी कीमतों की तर्कसंगतता भी उन्हीं को साबित करनी है। इस कानूनी लड़ाई को भी खुद उन्हीं ही लड़ना है तथा यह साबित करना है कि उन्होंने गलत किया अथवा सही, यह उनकी जिम्मेदारी व जवाबदेही है, जो लोग इतना बड़ा व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने के कर्णधार है, अपने को पाक साफ साबित करने के भी वही जिम्मेदार है, और वे इस कानूनी लड़ाई को विभिन्न मोर्चा पर लड़ते हुए नजर भी आ रहे है।
लेकिन मैं सोचता हूं कि सेठ लोग तो अपनी लड़ाई लड़ लेंगे, कंपनी चले या न चले उनका क्या बिगड़ जाएगा? यहां बेरोजगार तो गरीब हुए है, रोटी की चिंता तो उन करोड़ों उपभोक्ताओं को सता रही है जिनके पेट खाली है, इसलिए मैंने पहले भी कहा और फिर से कहना चाहता हूं कि मेरी चिंता का विषय न तो आरसीएम कंपनी है और न ही उसके करोड़पति संचालक। मेरी चिंता, सरोकार और प्रतिबद्धता तो उन हजारों श्रमिकों व कर्मचारियों को लेकर है जो विभिन्न प्रोडक्शन यूनिटों में काम कर रहे थे और आज तीन महीनों से उनके चूल्हों की आग ठंडी पड़ती जा रही है। मुझे चिंता देशभर में फैले उन करोड़ों उपभोक्ताओं के करोड़ो करोड़ हाथों की है जो आजीविका के अभाव में बेकार है तथा कभी भी अपराध के रास्तों पर बढ़ सकते है।
जो लोग गिरफ्तार है, जिनके मामले अदालत में है, उन्हें भारतीय न्यायपालिका में यकीन रखना होगा, देर से ही सही, इंसाफ वहीं से मिलेगा और यह भी कि अगर उन्होंने कानून की नजर में कुछ भी गलत किया है तथा उनका कोई भी कृत्य कानून की दृष्टि में सही नहीं पाया गया तो वे अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते है, बचने भी नहीं चाहिए। अगर आरसीएम के गोदामों में पाया गया गेहूं (जैसा कि पुलिस का दावा है) देश के गरीबों में बंटने वाला एफसीआई का गेहूं था तो उसके दाने-दाने का हम हिसाब चाहेंगे और उसके लिए जो भी कठोरतम सजा हो सकती है, वह इसके लिए जिम्मेदार लोगों को दी जाए, ऐसा भी हम चाहेंगे। कई बार आपके खिलाफ की गई कार्यवाही आपकी व्यवस्था में मौजूद खामियों व विसंगतियों को सुधारने में सहायक हो सकती है। आरसीएम से जुड़े लोगों को इस मौके का इसी रूप में सदुपयोग करना चाहिए।
मगर फिर से मेरे मन में यह सवाल है कि उन करोड़ों उपभोक्ताओं का इसमें क्या दोष है? जो संतुष्ट है और जिन्होंने कोई शिकायत भी नहीं की है, उनके भी तो कोई अधिकार है? जिन श्रमिकों, कर्मचारियों, व्यापारियों व उपभोक्ताओं के करोड़ों रुपए इस पुलिस कार्यवाही के चलते विगत तीन माह से अटके हुए है, उन्हें तो वह मिले, ऐसी व्यवस्था तो शासन-प्रशासन को करनी ही चाहिए, ऐसी मेरी मान्यता है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में खाकी वर्दी को अंग्रेजों के वक्त से नागरिकों को कुचलने के लिए दिए हुए असीमित अधिकारों में कटौती की जरूरत है। पुलिस जिसे चाहे उसे तबाह कर सकती है, उसकी जवाबदेही और न्यायोचितता पर सवाल खड़ा करना आफत मोल लेने जैसा है, इसलिए देश में पुलिस सुधार की सख्त जरूरत मुझे महसूस होती है।
मैंने आरसीएम का समर्थन क्यों किया? इस सवाल के जवाब में सैकड़ों और सवाल उभरते है जिनसे मैं जूझते रहता हूं कि देश के कोने-कोने में हो रही मोटीवेशनल सेमीनार्स क्यों प्रतिबंधित नहीं की जा रही है? क्यों डायरेक्ट मार्केटिंग सिखाने वाले स्कूल्स और इंस्टीट्यूशन्स चलने दिए जा रहे है, हमारे मंत्रीगण यह क्यों कहते है कि प्रत्यक्ष व्यापार प्रणाली में करोड़ों लोगों को रोजगार मिलने की अपार संभावनाएं है? यह कैसा पाखंड है कि कोई दुकानदार एक के साथ एक फ्री बेच रहा है तो जायज, बैंक और बीमा कंपनियां आकर्षक आर्थिक लाभ के विज्ञापन कर रहे है, सरकारी दफ्तरों से सरकारी योजनाओं को पोपुलर करने के लिए ड्रा निकाले जा रहे है। अवैध खनन जायज है, सरकारें शराब के ठेके नीलाम कर रही है, माफिया राजनीति को नियंत्रित कर रहे है, विदेशी चंदे से समाज सेवा का गोरखधंधा पनप रहा है और सेठ-साहूकारों के अवार्ड लेकर भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चे निकाल रहे है, मगर एक आर्थिक अभियान जिसने छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, जात-पांत, धर्म, भाषा, प्रांत और संप्रदाय व लैंगिक भेद की सीमाओं के परे जा कर बेहतर भारत की कल्पना की है, उनके लिए जेल की सलाखें उपहार में दी गई है, इस कृतध्नता पर क्या कहा जाए? कई बार सोचता हूं कि हम अजमल कसाब जैसे आतंककारी को तो अभेद्य सुरक्षा में रखकर बिरियानी खिला रहे है। प्रवासियों को अपने मुल्क में बुला रहे है, निवेश के लिए उन्हें लुभा रहे है और जो निवेश करके करोड़ों रुपए का राजस्व दे रहे है उन्हें भगा रहे है, गिरफ्तार कर रहे है, जेलों में सड़ा रहे है, यह कैसा विधान है? प्रवासियों से प्यार और अपनों को दुतकार!
इस देश में दारू की दुकानें तो खुलेआम सड़क-सड़क हर गांव गली शहर नगर मोहल्ले में खोली जा सकती है, शराब बेचो, कोई दिक्कत नहीं, अफीम के डोडे बेचो, सरहद के पास की जमीनें बेचो, 2 जी बेचो, जिस्म बेचो, मौका मिले तो मुल्क ही बेच दो, कोई पाबंदी नहीं, कोई रोकने-टोकन वाला नहीं है, मगर किसी कंपनी के प्रोडक्ट मत बेचो वह भी भारतीय कंपनी, लेकिन वह नहीं चल सकती है, क्योंकि चंद लोग नहीं चाहते है, भले ही करोड़ों लोग चाहे।
अगर डायरेक्ट मार्केटिंग बिजनेस सिस्टम गैर कानूनी है, फ्राड है, चिटफण्ड है तो फिर सैकड़ों की तादाद में हिंदी, अंग्रेजी व अन्य जन भाषाओं में इस विषय पर प्रकाशित की गई किताबें क्यों मार्केट में बिकने दी जा रही है, इनके लेखकों, मुद्रकों व प्रकाशकों को क्यों गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है?
और तो और अमेरिकन कंपनी ‘एमवे’ भारत में चल सकती है, आरसीएम के खिलाफ कार्यवाही होने के बाद आरसीएम जैसी ही ‘एनमार्ट’ नामक प्रोडक्ट बेस्ड डायरेक्ट सेलिंग कंपनी का भीलवाड़ा में स्टोर खुला, और भी कई सारी उत्पाद आधारित कंपनियां वैसे ही चल रही है, किसी से कोई दिक्कत नहीं है। सिर्फ और सिर्फ आरसीएम ही टारगेट पर क्यों है, निशाना साफ है, मकसद साफ है, आरसीएम को मिटा देना है ताकि देशी रिटेल को खत्म किया जा सके और एफडीआई के तहत विदेशी रिटेलरों को लाया जा सके, कितना शर्मनाक सच है यह?
क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि जिन उत्पादन इकाईयों को बंद किया गया है, उससे कितनी हानि हुई है, क्या यह तौर-तरीके हमारे विकास, हमारी तरक्की को बाधित नहीं करते है? पर कौन सुने? राजनीति, प्रशासन, पुलिस और मीडिया तो आरसीएम का नाम लेते ही भड़क जाते है, जैसे कि कोई प्रतिबंधित संगठन है, हम जैसे लोग अपने लब खोलते है, बोलते है तो हम भी बहिष्कार का शिकार हो जाते है, मगर कुछ भी हो मैं आरसीएम के आम उपभोक्ता के पक्ष में हूं, मेरा मानना है कि भारत में डायरेक्ट मार्केटिंग सिस्टम के लिए अगर कोई कानून नहीं है, नियामक प्राधिकरण नहीं है तो यह भूल आम उपभोक्ता की नहीं है, यह जनप्रतिनिधियों का काम है कि वे प्रत्यक्ष व्यापार प्रणाली पर अंकुश व नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय अधिनियम संसद के बजट सत्र में लाए, जब तक कानून नहीं बने तब तक अध्यादेश लाकर एक स्पष्ट गाइडलाइन लागू की जाए ताकि देश भर में करोड़ों लोग इसमें रोजगार के अपने नैसर्गिक अधिकारों की पुर्नप्राप्ति कर सके।
जो भी फर्जी कंपनियां है, लोगों को लूटती है, पिरामिड या मनी सर्कुलेशन चिटफण्ड स्कीमें चलाती है, उनके खिलाफ बेशक कार्यवाही की जाए, उन्हें कड़ी सजा मिले हम इसके पक्षधर है, मगर सही और गलत में फर्क कीजिए, अन्यथा देश में आर्थिक अराजकता का माहौल बनेगा जिसकी जिम्मेदारी से हम बच नहीं सकते है।
मेरा आरसीएम के आम उपभोक्ताओं से कहना है कि वे कंपनी, उसके संचालकों और अपने लीडरों की तरफ मदद की उम्मीद में देखना बंद करें, क्योंकि वे इस वक्त क्या मदद करेंगे? उन्हें तो खुद मदद चाहिए। मैं यहां तक कहना चाहता हूं कि उनकी तरफदारी भी बंद कर दें, केवल अपने अधिकारों के लिए खुलकर संघर्ष करें, आपका अटका हुआ पैसा आपका अधिकार है, आपकी पसंद का उत्पाद खरीदना आपका अधिकार है, शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण तरीके से रोजगार करना आपका अधिकार है, अगर इन अधिकारों को कोई बाधित करता है तो बोलना और संगठित होना आपका संविधान प्रदत्त हक है, अहिंसक संघर्ष करना और अपनी बात, अपना पक्ष जोरदार तरीके से शासन, प्रशासन तथा न्याय पालिका और खबर पालिका तक पहुंचाना आपका लोकतांत्रिक अधिकार है, इसे कोई नहीं छीन सकता है। डरिए मत, अपनी आवाज को बुलंद कीजिए, अपना पक्ष मुल्क के सामने रखिए, आखिर तो जीत सत्य की ही होगी।
अंत में साहिर लुधियानवी के शब्द -
न मुंह छिपा कर जीये हम, न सिर झुका कर जिये
सितमगरों की नजर से, नजर मिलाकर जिये
अब इक रात अगर कम जीये तो कम ही सही
यही बहुत है कि मशालें जलाकर जीये।
- भंवर मेघवंशी
(लेखक - www.khabarkosh.com के संपादक और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता है, उनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

Sunday, 26 February 2012

एक खुला पत्र मिडिया के नाम


मेरे प्यारे मिडिया कर्मी भायियो
मिडिया के कई प्रतिनिधि चिट-फंड कानून 1978 के उलंघन के रूप में RCM के बारे जो मन में  रहा है वोलिख रहे है .....माना इस देश में MLM के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है लेकिन कंही  कहीं भारतसरकार ने कानून नहीं बना कर गलती भी की है. 1995 से अब तक बहुत सारी कंपनिया चल रही थीअगरवे कानून विरुद्ध थी तो आप लोग उसी समय पुरजोर आवाज उठाते तो आज देश की भोली भाली जनता किसी कंपनी को नुकसान नहीं उठाना परताक्या वे सब सरकार और आप लोगों की रजामंदी से नहीं चलरही थीअचानक क्या हो गया? इन कंपनियों को बंद करके धोका तो आप दोनों (मिडिया  भारतसरकार)ने किया हैआप लोग कहते हो की कंपनियों ने लोगो के साथ किया हैकोसना सरकार व् खुद कोथा, कोस रहे है कंपनियों तथा नेटवर्कर को.  सरकार  अपनी गलती छुपाना ही आपकी मुख्य जिमेदारी हैक्या भारतीय मिडिया की ओर से एक भी प्रतिनिधि ऐसा नहीं है जो MLM सिस्टम के बारे में सही ज्ञानरखता हो,सरकार के सामने इसका सही रूप रख सकेमेरा अनुरोध है की एक बार तो कम से कम MLMसिस्टम के बारे रास्ट्रीय - अंतरास्ट्रीय सलाहकारों से पूछोतो सही की “ ये MLM है क्या बला "....कंही ऐसा तोनहीं है की आप लोग ये समझ बैठे हो की हम सब कुछ जानते है ..लेकिन मैं आपको बता दूँ आप लोग जानेअनजाने रूप से लाखों परिवारों की रोजी रोटी पर लात मार रहे है.एक बार अपने जमीर से पूछिये  क्या आपसही कर रहें है .....? आशा है ....आप देश हित में RCM (MLM) का सही पक्ष सरकार के सामने लायेंगे .

आपका 
नूतन शर्मा मोब .9414990528

Friday, 17 February 2012

Saturday, 14 January 2012

आरसीएम यानी कांसेप्ट मार्केटिंग


एक महत्त्वपूर्ण आग्रह - आरसीएम परिवार से


जय आरसीएम ,
 आपके द्वारा कई तरह की मेल और कमेन्ट्स लगातार मिल रहे हैं लेकिन ब्लाँग की अपनी
 कुछ सीमाये है जिसके चलते सभी को पबलिस करना सम्भव नही है लेकिन यह निश्चित 
है कि आपके द्वारा भेजी पोस्टो और कमेन्ट्स के माधम्य से आरसीएम के पक्ष मे जो 
भावनाये व्यक्त की जा रही है निश्चित रूप से उससे अन्य साथियो का मनोबल तो बढ ही
 रहा है साथ ही दुनिया को यह भी पता चल रहा है कि वास्तव मे आरसीएम क्या है ? 
उसकी सोच क्या है और उसके साथ कैसे लोग जुडे हुये हैं  और अपने देश को इस सिस्टम
 की कितनी आवश्यकता है ।   

अपने बहुत से साथी आज नेट के माध्यम से दुनिया से जुडे हुये है उनके ध्यान मे यह
 बात लाना चाहता हूँ कि आज के समय मे फेसबुक या ईन्टेर्नेट एक ऐसा माध्यम है जिस
 पर हर प्रकार के करोडो लोग विजिट करते है । इसलिए आपको उस पर कुछ भी 
शेयर करने से पहले बहुत सावधानी रखने की ज़रूरत है । जैसा कि हम जानते ही है कि
 अभी आरसीएम का मामला कोर्ट मे चल रहा है और अपेक्षा है कि बहुत जल्द सच्चाई
 सब के सामने आएगी की आरसीएम चिटफण्ड कम्पनी नहीं हैं । इसलिये सभी को नेट पर
 कुछ भी शेयर कर अपनी उपस्थिती दर्ज कराने जैसी स्थिति से बचना चाहिये । बिना पूरी
 बात जाने या समझे कोई बात किसी के पक्ष या विपक्ष मे   बोलने या लिखने से 
बचना चाहिये न ही कोर्ट के फ़ैसले से सम्भावित कोई टिप्पणी करनी चाहिये । यदि
 किसी साथी के पास कोई आगामी बैठक या योजना के सम्बन्ध मे कोई जानकारी हो 
तो उसे भी उत्तेजित होकर शेयर करने की आवश्यक्ता नही है वरिष्ट साथी जब आवश्यकता 
होगी उस पर निरण्य कर अपको जरूर सूचित करेगे ऐसी अपेक्षा है साथ ही कई छोटे-छोटे
 अखबारो की आधारहीन खबरों को शेयर करने से बचे । जिन अख़बारों को कोई पढ़ता ही
 नही है उन्हे हम खुद ही फसेबूक/नेट पर डालकर पूरे भारत मे फैला रहे है क्या यह 
स्थिति हमारे लिये सही है? आप स्वयं समझ सकते हैं । 

सभी साथियो से निवेदन है कि कुछ भी लिखने या शेयर करने से पहले अपने 
वरिष्ट साथियो से जरूर विचार विमर्स करें । थोड़ी सावधानी और धैर्य रखें, आशा ही
 नही पूर्ण विश्वास है कि बहुत जल्द न्याय और सच्चाई की जीत होगी और आरसीएम 
परिवार जनवरी की क्लोजिंग ज़रूर करेंगा निश्चित रूप से आज की परिस्थिति मे ऐसी आशा
 की जा सकती है

Message From TC Ji-3


Thursday, 12 January 2012

वकीलों की हड़ताल से रुकी कार्यवाही


आज १२ जनवरी २०१२  हाई कोर्ट में चार जानो की जमानत का फैसला आने वाला था पर
 वकीलों की हड़ताल की वजह से  .. माननीय हाई कोर्ट फैसला नहीं सुना सका ..
फैसला  हाई कोर्ट में सुरक्षित है ... .


Wednesday, 11 January 2012

सरकार का यह कैसा चिट फंड ....?


सत्य परेशान तो होता है परन्तु परास्त नहीं


" सत्यमेव जयते "

सत्य का सामना करना जितना मुश्किल होता है, उस से ज्यादा सत्य की राह पर चलना होता है, हम किसी भी युग की बात करें, जब भी जिस किसी ने अपने जीवन का आदर्श सत्य के मार्ग को चुना, उस ने जीवन का भौतिक आनंद कम और परेशानियों, मुश्किलों, और अपमान का स्वाद ज्यादा चखा हैं, सत्यवादी हरिश्चंदर, महात्मा गाँधी जैसी पुन्य आत्माओं के किस्से हमारे सामने हैं।
भौतिक आनंद और आलौकिक आनंद में दिन रात का फर्क है, भौतिक आनंद में जब तक जीवन है शरीर सुख का भोग तो होता है परन्तु मन, आत्मा और स्वाभिमान कुंठित रहते हैं। जबकि आलौकिक आनंद से जीवन का लक्ष्य गद-गद होता है। आलौकिक सुख पाने के लिय जीवन की चर्या केवल सच्चाई के मार्ग पर निस्वार्थ भाव से चल कर के ही पाई जा सकती है।
सत्य का मार्ग कटीला है पर सुखदाई है, इस में परेशानी है पर पराजय नहीं, सत्य मनुष्य को परमार्थ की तरफ ले जाता है, सत्य निर्भय है, सत्य शाश्वत है, सत्य ईश्वर का रूप है, सत्य अपराजय है, सत्य सृष्टि है। सत्य की राह पर चलने वाला दुखी तो जरुर होता है परन्तु उसे अंत में जीवन का वो मुकाम मिलता है, जहाँ वह ईश्वर का पर्याय हो जाता है।
किसी महान आत्मा, विचारक और संत ने सत्य की आलौकिक परिभाष करते हुए बहुत ही सटीक कहा है:-

" सत्य परेशान तो होता है परन्तु परास्त नहीं"

फैसला कल



जय आर सी एम् .

जोधपुर हाई कोर्ट में आज 4 लोगो के जमानत पर  सुनवाई हो गई  है ..

फैसला  कल 12 JAN 2012 को 2 बजे  के लिए सुरक्षित  रखा गया है

और..मुख्य केश की सुनवाई 9 JAN 2012 को होगी

बस  कुछ इंतज़ार और ........

Message From TC Ji


नई क्रांति ....


स्वर्ग सा संसार ..


अभी लड़ाई बाकी है ....


Tuesday, 3 January 2012

सत्य की जीत होकर रहेगी


सत्य की जीत होकर रहेगी
प्रिय सेवक,
जय आर सी एम

संसार में जितन महान व्यक्ति हुएँ हैं सबने सत्य का सहारा लिया है -सत्य
की उपासना की है | चंद्र टरै सूरज टरै टरै जगत व्यवहार के उद्‌घोषक राजा
हरिश्चंन्द्र की सत्य निष्ठा विश्वविख्यात है | हालांकि उन्हें सत्य के
मार्ग पर चलने में अनेक कठनाईयो के दलदल में फंसना पड़ा | राजा दशरथ ने
सत्यवचन निर्वाह के लिए अपना प्राणोत्सर्ग तक किया | महात्मा गांधी ने
सत्य की शक्ति से ही अंग्रेजों का शासन की जड़ काट दी उनका कथन है -"सत्य
एक विशाल वृक्ष है, उसकी ज्यों ज्यों सेवा की जाती है त्यों त्यों उसमें
अनेक फल आते हुए नजर आते हैं उसका अंत नहीं होता है |वस्तुतः सत्य भाषण
और सत्य पालन के अमित फल होते हैं ,इस पर ही संसार का सभी विज्ञान आधारित
है सारा मानव समाज इसी धुरी पर ही कायम है | RCM इसी सत्य पर आधारित मानव
समाज के कल्याणार्थ इस सृष्टि का प्रसाद है , जिसके द्वारा यह स्थिर है
वो परमात्मा हैँ और जिसके द्वारा यह चल रहा है वो माननीय श्री टी॰ सी॰
छाबड़ा हैँ ; इसकी जीत पक्की है ।

और कहना चाहूँगी कि~

तूफानों की कमी नहीँ है इस जीवन मेँ ,
लड़ते हुए ये सफर तय करना ।
जो मिले जख्म सफर ए राह मेँ,
उन्हेँ ही तुम जिन्दगी का तजुरबा कहना,
लाख जख्म खाने पर भी,
हर जख्म नया होगा,
तजुरबे कितने ही क्योँ न हो,
लेकिन हर सफर नया होगा ॥


आपकी सच्ची सेविका
     रेखा झा, दरभंगा {बिहार}

अंतिम जीत हमारी होगी..



यार्न बाज़ार से आई खुशखबर